Saturday, October 31, 2009

हमारे समय के प्रगतिशील लोग (कविता)

"हमारे समय के प्रगतिशील लोगों के लिए / स्त्री के बारे में सोचना माने सेक्स के बारे में सोचना / लोगों के जीने-खाने की आज़ादी से ज़्यादा फ़िक्र / उन्हें उनकी सोने की आज़ादी को लेकर है / दुनिया की सबसे प्रगतिशील स्त्री वो है / जो बाहर अपने पति और परिवार के ख़िलाफ़ बोलती हुई / उनके साथ भीतर चली आए।"

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"हमारे समय के प्रगतिशील लोग चाहते हैं कि सेक्स एजुकेशन बचपन से मिले / ताकि जब आठवीं क्लास के बच्चे एमएमएस बनाएँ / तो कॉन्डोम का इस्तेमाल करना ना भूलें / हमारे समय के प्रगतिशील लोग चाहते हैं कि / एक दिन कॉन्डोम इतना पॉपुलर हो जाए कि / बच्चे कॉन्डोम को गुब्बारों की तरह उड़ाएँ / और माँ-बाप इस महंगाई के ज़माने में गुब्बारों का पैसा बचा लें।"

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"हमारे समय के प्रगतिशील लोग / पुरबा हैं कि पछुआ हैं / खरगोश हैं कि कछुआ हैं / पता ही नहीं चलता। हमारे समय के प्रगतिशील लोग / मोटे हैं कि महीन हैं / अमेरिका हैं कि चीन हैं / पता ही नहीं चलता।"

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लेखक की वेबसाइट का पता: http://www.abhiranjankumar.com